MP Board Class 12th Hindi 3 Marker Very Very important Question 2024/कक्षा 12 वीं हिन्दी महत्वपूर्ण प्रश्न 2024

  

एमपी बोर्ड कक्षा 12 हिन्दी 3 अंकीय टॉप प्रश्न उत्तर -

एमपी बोर्ड कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं 6 फरवरी से शुरू हो रही है ।  उसके लिए इस पोस्ट में हम कक्षा 12वीं हिंदी बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण 3 अंकीय सिलेक्टिव प्रश्न बताएंगे साथ ही उनके उत्तर भी इस पोस्ट में दिए गए हैं। 

                             इन सभी प्रश्नों को आप अपनी परीक्षा के लिए कंप्लीट कीजिए, यह प्रश्न आपकी परीक्षा में बहुत ही अच्छे अंक आपको दिलाएंगे क्योंकि यह प्रश्न बार-बार रिपीट होंने वाले प्रश्न है ।  और कई बार बोर्ड की परीक्षा में यह पूछे गए हैं । इन प्रश्नों में सभी प्रश्नों के उत्तर भी हैं, तो आप इनको कंप्लीट कर सकते हैं साथ ही यदि आप इसका पीडीएफ डाउनलोड करना चाहते हैं तो पीडीएफ डाउनलोड का लिंक भी आपको इस पोस्ट में मिल जाएगा इस संपूर्ण पोस्ट को जरूर पढ़ें । 






कवि परिचय (3 अंक एक प्रश्न )

1.                 तुलसीदास

2.                 रघुवीर सहाय

3.                 हरिवंश राय बच्चन ***

4.                 कुँवर नारायण

1.    तुलसीदास काव्यगत परिचय

रचनाएँ - रामचरित मानसदोहावलीकवितावलीविनय पत्रिका आदि।

भाव पक्ष - तुलसी साहित्य में लोकहितलोकमंगल की भावना सर्वत्र मुखर है । आप राम के अनन्य भक्त है । आपके काव्य में समन्वयवादी दृष्टिकोण दार्शनिकता है । आप रससिद्ध कवि हैं।

कला पक्ष - तुलसी ने अपने समय में प्रचलित अवधी और ब्रज-भाषा को अपनाया। यद्यपि उन्होंने संस्कृत शब्दों का प्रचुरता से प्रयोग किया है तथापि कहीं भी वह बोझिल अथवा दुरूह नहीं हो पाई अलंकारों एवं रसों के सहज प्रयोग से रचनाएँ प्रभावोत्पादक बन गई है। छन्द योजना में दोहाचौपाईकवित्तसवैया आदि का प्रयोग किया है |

साहित्य में स्थान- तुलसी ने अपनी अप्रतिम काव्य प्रतिभा से साहित्य का गौरव बढ़ाया है । तुलसीदास महान समन्वयकारी कवि थे उन्हें साहित्य के आकाश का चन्द्रमा कहा गया है।

 

 

2. रघुवीर सहाय  काव्यगत परिचय

रचनाएं - हँसो-हँसो जल्दी हँसो, लोग भूल गये है, एक समय था, सीढ़ियों पर धूप में।

भाव पक्ष - कवि ने समकालीन समाज के मध्यवर्गीय जीवन का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है। इन्होने अपने काव्य में मध्यवर्गीय जीवन के तनाव और विडम्बनाओं का वर्णन किया है। रघुवीर सहाय ने अपने काव्य में समकलीन समाज में फैले भ्रष्टाचार का यथार्थ चित्रण किया है। इन्होने लोकतन्त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की प्रत्येक गतिविधि का मार्मिक वर्णन किया है। इनकी अनेक कविताओं में समकालीन सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, विडम्बनाओं के प्रति पैने व्यंग्य देखने को मिलते हैं।

कला पक्ष - रघुवीर सहाय जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ा बोली है जिसमें संस्कृत के तत्सम, तद्भव और विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी समायोजन हुआ है। वास्तव में इनकी भाषा सरल, साफ-सुथरी एवं सधी हुई है। रघुवीर सहाय ने अपनी कृतियों में विभिन्न शैलियों को अपनाया हैं। मुख्य रूप से इनकी शैली व्यंग्यात्मक रही हैं। इनके काव्य में अनुप्रास पदमैत्री, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण इत्यादि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। इनके कविताओं में अभिधा, लक्षण एवं व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग हुआ है। इन्होने अपनी कविताओं में मुक्तक छंद का प्रयोग किया है।

साहित्य में स्थान- रघुवीर सहाय एक लम्बे समय तक याद रखे जाने वाले कवि हैं। हिन्दी साहित्य में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनके इस विलक्षण योगदान के लिए साहित्य में उनका स्थान अत्यन्त उच्चकोटि का है।

 

 

 

3. हरिवंश राय बच्चन काव्यगत परिचय

रचनाएं - मधुशाला, मधुवाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत आदि। 

 

भावपक्ष -  हरिवंशराय बच्चन हालावादी कवि हैं । हालावाद के साथ रहस्यवादी भावना का अनूठा एवं अद्भुत संगम उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है। उनकी कविताओं में प्रेम और सौन्दर्य सामाजिक चेतना के भाव मुखरित हैं । 

 

कलापक्ष - हरिवंश राय बच्चन की कविताओं में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग इनके काव्य में हुआ है। मुख्य रूप से प्रांजल शैली एवं गीति शैली के दर्शन इनके काव्य में होते हैं । इनके काव्य में उपमा, रूपक, यमक, अनुप्रास, श्लेष आदि अनेक अलंकारों का प्रयोग हुआ है। 

 

साहित्य में स्थान - हालावाद के प्रवर्तक कवि हरिवंशराय बच्चन शुष्क एवं नीरस विषयों को भी सरस ढंग से प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। वे छायावादोत्तर युग के प्रख्यात कवि हैं। हरिवंशराय बच्चन जैसे महान और उच्च कोटी की विचारधारा वाले कवि सदियों में जन्म लेते हैं ।

 

 

 

 

 

 

4. कुँवर नारायण काव्यगत परिचय

रचनाएं - अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, कविता के बहाने, इन दिनों ।

भाव पक्ष - कुँवर नारायण जैसे रचनाकार की कविताएँ अपने आप में सामाजि में सामाजिक मूल्यों की अमूल्य धरोहर है। कुँवर जीने अपनी पूरी काव्य यात्रा में मानवीय सम्बन्धों को नई तरह से परिभाषित किया। । नव सामाजिक मूल्यों के के प प्रति उनकी निष्ठा स्पष्ट झलकती है। कुँवर जी ने अपनी कविताओं में समय-समय पर सत्ता की राजनीति परे तीक्ष्ण प्रहार किये है। संवेदनशीलता और अहिंसा दृष्टि उनकी रचनाओं में गुथी हुई है और इसीलिए उनकी काव्य संवेदन फलीभूत भी हुई।

कला पक्ष - कुँवर नारायण ने अपनी कविताओं में विषय- विविधता के साथ-साथ अनेक भाषाओं का प्रयोग भी किया है। उनके काव्य की प्रमुख भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें अंग्रेजी, उर्दू फारसी, तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है। उनकी भाषा सीधी, सरल एवं चुटीली है। कुँवर नारायण की शैली विषयानुरूप है जो अत्यन्त संजीदा, गम्भीर, विचारात्मक एवं प्रतीकात्मक है। प्रतीकात्मकता इनकी शैली की विशिष्टता है। इनकी कविताओं में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। प्रमुख रूप से अनुप्रास, यमक, उपमा, रूपक इत्यादि अलंकारों के प्रयोग से आपकी कविताएँ अत्यन्त प्रभावी बन पड़ी है। आपने अपने काव्य में मुख्य रूप से मुक्तक छंद का प्रयोग किया है।

साहित्य में स्थान- कुँवार नारायण की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य जगत में सर्वमान्य है। कुँवर जी अपनी रचनाशीलता के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे। 

  

 

 

लेखक परिचय (3 अंक एक प्रश्न )

1.                 महादेवी वर्मा ***

2.                 हजारी प्रसाद द्विवेदी

3.                 फणीश्वर नाथ रेणु ***

4.                 धर्मवीर भारती

 

1.     महादेवी वर्मा साहित्यिक परिचय

रचनाएँ –  यामा, नीरजा, दीपशिखा ।

भाषा - शैली - महादेवी की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा में काव्यात्मक चित्रमयता सर्वत्र देखने योग्य है। इनकी गद्य रचनाओं में भी काल की चित्रमयता, मधुरता एवं कल्पनाशीलता विद्यमान रहती है जिसमें पाठकों को एक अनोखी आत्मीयता के दर्शन होते हैं। शब्दों का चयन एवं वाक्य-विन्यास अत्यन्त ही कलात्मक है। गद्य में लाक्षणिकता के पुट से एक मधुर व्यंग्य की सृष्टि होती है। भाषा संस्कृतनिष्ठ होने पर भी उसमें शुष्कता और दुर्बोधता का अभाव है। भावों को अभिव्यक्ति में आपको अद्वितीय सफलता मिली है।

साहित्य में स्थान - छायावादी कवियों में आपका प्रमुख स्थान है।

 

 

2.    हजारी प्रसाद द्विवेदी साहित्यिक परिचय

रचनाएँ - विचार और वितर्क, अशोक के फूल, कल्पलता, कुटज ।

भाषा - द्विवेदी जी की भाषा तत्सम तद्भव प्रधान, साहित्यिक एवं व्यावहारिक खड़ी बोली हिन्दी है। उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत के शब्दों का प्रयोग आवश्यकतानुसार हुआ है। मुहावरों ने भाव बोध में सहजता दी है।

शैली- हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की शैली भाव प्रधान, आलोचनात्मक, गवेषणात्मक है। इन शैलियों से भाव माधुर्य, व्यंग्य, आलंकारिक एवं चिन्तन को स्पष्टता मिलती है।

साहित्य में स्थान- हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि में हजारीप्रसाद द्विवेदी का योगदान महत्त्वपूर्ण है।

 

 

3.    फणीश्वर नाथ रेणु साहित्यिक परिचय

रचनाएँ – मैला आँचल , जुलूस, आदिम रात्रि की महक ।

भाषा -  रेणु जी ने आम बोलचाल की खड़ी बोली को प्रधानता है। अपनाया है जिसमें तदृ‌शव व देशज शब्दों की

शैली-  रेणु जी नै शैली के क्षेत्र में भी नये-नये प्रयोग करके हिन्दी कथा शैली को नई दिशाएँ प्रदान की है। उनकी शैली के विविध रूप निम्नलिखित हैं- वर्णात्मक  शैली, रिपोर्ताज  शैली, मनोवैज्ञानिक शैली, विम्बात्मक चित्रोपम शैली, हास्य व्यंग्यात्मक शैली, भावालाक शैली ।

साहित्य में स्थान -  रेणु जी ने हिन्दी साहित्य में आंचलिक विधा को जन्म दिया दूसरी और स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी सक्रिय भागीदारी की।

4. धर्मवीर भारती साहित्यिक परिचय

दो रचनाएँ :- कनुप्रिया, सात-गीत वर्ष, ठंडा लोहा आदि।

भाषा-शैली :- भारतीजी की भाषा परिष्कृत एवं परिमार्जित खड़ीबोली है। इनकी भाषा में सरलता, सजीवता और आत्मीयता का पुट है तथा देशज, तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से भाषा में गति और बोधगम्यता आ गयी है। विषय और विचार के अनुकूल भारतीजी की रचनाओं में भावात्मक, समीक्षात्मक, वर्णनात्मक, चित्रात्मक शैलियों के प्रयोग हुए हैं।

साहित्य में स्थान :- इनका साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। पद्मश्री, व्यास सम्मान एवं साहित्य के कई अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया है। हिंदी साहित्य सदैव ऋणी रहेगा।

 

 

 

  

 

 

भाषा बोध (3 अंक एक प्रश्न )

ü भाव पल्लवन

1.    "बैर क्रोध का अचार या मरब्बा है।"

भाव-पल्लवन- बैर का उद्गम स्थल क्रोध है। क्रोध ही आगे चलकर वैर में परिणत हो जाता है। जब कोई इन्सान किसी का अहित करता है तब अन्य मनुष्य जिसका अहित किया है, वह भी क्रोध के वशीभूत होकर इसके बदले में अहित करने के लिए उद्यत हो जाता है। यदि वह बदला (प्रतिकार) लेने में असफल सिद्ध होता है तो उसका क्रोध बहुत काल तक उसके हृदय में बना रहता है। प्रतिकार कर लेने पर क्रोध का शमन हो जाता है। बहुत समय तक विद्यमान रहने वाले क्रोध को ही बैर की कोटि में स्थापित किया गया है। क्रोध के वैर बनने की प्रक्रिया के फलस्वरूप ही इसे क्रोध का अचार या मुरब्बे की संज्ञा से विभूषित किया गया है। जिस प्रकार विशेष ढंग से तैयार किया गया मुरब्बा अधिक टिकाऊ बन जाता है. वैसे ही बहुत समय तक हृदय में स्थित क्रोध बैर का रूप धारण कर लेता है।

2.    जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।

भाव-विस्तार - इस संसार में जन्म देने वाली जननी (माँ) होती है और संसार में आने के पश्चात् पालन-पोषण करने वाली जन्मभूमि होती है। इस प्रकार जननी और जन्मभूमि सबसे श्रेष्ठ होती हैं। इन दोनों के बिना मनुष्य का जन्म तथा जीवन सम्भव नहीं है। ईश्वर के बाद जननी ही पूज्य तथा श्रद्धेय होती है। हम जन्मभूमि पर निवास करते हैं, उसी के अन्न, फल, दूध आदि से हमारा शरीर पुष्ट होता है। इसीलिए जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।

 

 

 

ü सार संक्षेपण

प्रश्न - मूल कथन 

मन की एकाग्रता की समस्या सनातन है। आज के प्रौद्योगिकी युग में जहाँ भौतिक उन्नति की संभावनाएँ अपार हैं ऐसे में छात्र जब अध्ययन करने बैठता है, तब उसके मन को अनेक तरह के विचार घेरने लगते हैं। वह सोचता है इस अर्थ प्रधान युग में मुझे उत्कृष्ट पद प्राप्ति के लिए एकाग्र मन से पढ़कर परीक्षा में उच्चतम श्रेणी प्राप्त करना आवश्यक है। लेकिन वह जब पढ़ने बैठता है तो क्रिकेट, सिनेमा या मित्र-मण्डली की मौज-मस्ती के विचारों में उसका मन भटकने लगता है। मन का यह विचलन बुद्धि की एकाग्रता को भंग कर देता है। वह घबरा कर सोचता है परीक्षा तिथि पास है, मन उद्विग्न है, कैसे अध्ययन करूँ ? क्या करूँ ? व्यर्थ के विचारचक्र से बुद्धि अस्थिर और मन चंचल बना रहता है। वह सोचता है यदि परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा। पद, प्रतिष्ठा, वैभव कुछ नहीं मिलेगा, जीवन बोझ बन जाएगा। वह बार-बार हताशा से घिर जाता है। अनियंत्रित मन और एकाग्रहीनता उसे चिंताओं में डुबो देती है। अर्जुन की यह स्वीकारोक्ति कि' चंचल मन का निग्रह वायु की गति रोकने के समान दुष्कर है' उसे उचित प्रतीत होने लगता है।

उत्तर - संक्षेपण

मन की एकाग्रता की समस्या सदा से रही है। छात्र पढ़ने बैठता है तो उसके मन में अनेक विचार घूमने लगते हैं। उन्नति के लिए वह एकाग्र करने का मन बनाता है पर मनोरंजन के साधन उसे भटका देते हैं। मन की एकाग्रहीनता उसे चिंतामग्न कर देती है। अनुभव करने लगता है कि चचंल मन को एकाग्र करना दुष्कर है।

शीर्षक- 'मन की एकाग्रता'

 

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ü संवाद लेखन

प्रश्न - क्रिकेट के खेल विषय पर दो मित्रों के मध्य संवाद लिखिए। (2023)

उत्तर- अमन- भाई ऋषि ! आजकल क्रिकेट कुछ अधिक ही हो हो गया है।

ऋषि- हाँ भाई अमन ! कह तो तुम ठीक रहे हो। क्रिकेट की चकाचौंथ में अन्य सभी खेल मानों विलुप्त हो गये हैं।

अमन- एक बात तो माननी पड़ेगी कि क्रिकेट खेल का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि जो भी कोई एक बार इसके सम्पर्क में आता है, इसी का होकर रह जाता है।

ऋषि- इसका कोई भी प्रारूप हो-टेस्ट, एक दिवसीय या फिर 20-20, सभी के करोड़ों दीवाने हैं ।

अमन- क्रिकेट में पैसा और प्रसिद्धि दोनों हैं।

ऋषि- और फिर इस खेल में प्रायोजक भी सरलता से मिल जाते हैं।

अमन- भारत ने भी कई नामचीन क्रिकेटर विश्व को दिए हैं; जैसे-गावस्कर, कपिल देव, सचिन, सौरभ गांगुली, धोनी, विराट कोहली, इत्यादि।

ऋषि- मुझे ऐसा लगता है कि इस खेल की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण भारत के प्रत्येक छोटे-बड़े शहर में इस खेल से सम्बन्धित सामान का सरलता से उपलब्ध होना है।

अमन- इसके साथ-साथ इस खेल के प्रति लोगों की रुचि इस कारण से भी है कि क्रिकेट ने देश को कई बार गर्व करने का अवसर जो दिया है।

ऋषि- बिल्कुल ठीक कहा तुमने अमन पर अच्छा हो कि क्रिकेट के साथ-साथ अन्य सभी खेलों को भी लोग पसंद एवं प्रोत्साहित करें। अमन- बात तो एकदम सत्य कही है तुमने। सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए और अन्य खेलों के प्रसार के लिए कदम उठाने चाहिए।

 

 

 

 

 

ü अनुच्छेद लेखन

                                       छात्र जीवन में अनुशासन (2022)

छात्र जीवन और अनुशासन एक-दूसरे के पूरक हैं। यूँ कहें कि अनुशासन ही जीवन की नींव है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बहुत महत्व है। अनुशासित भी विद्यापी सफलता की ऊँचाई को छूने में सफल होता है जो विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासनया की अपनाता वह कभी भी सफल नहीं होता बल्कि अपने जीवन को ही बर्बाद कर लेता है। जबना अनुशासन के विद्यार्थी जीवन कटी-पतंग के समान होता है जिसका कोई लक्ष्य नहीं होता जो विद्यार्थी अपने विद्यालय के प्रांगण में रहकर प्रतिक्षण अनुशासन का पालन करता है: अपने शिक्षकों का आदर करता है और इतना ही नहीं जीवन में हर पल नियम एवं अनुशासन में बँधकर चलता है; वह कदापि निष्फल नहीं हो सकता। सफलता उसके कदम अवश्य ही चूमती है। इसलिए विद्यार्थी को कभी भी अनुशासन भंग नहीं करना चाहिए बल्कि सदैव अनुशासन का पालन करना चाहिए। एक अनुशासित विद्यार्थी ही राष्ट्र का आदर्श नागरिक बनता है और देश के चहुंमुखी विकास में अपना योगदान देता है।

 

ü व्याकरण – last video

 

अपठित गद्यांश / पद्यांश  (3 अंक एक प्रश्न )

 

ü     शीर्षक

ü     एक प्रश्न

ü     सारांश 




कक्षा 12 वीं हिन्दी 3 अंकीय प्रश्नोत्तर पीडीएफ़ लिंक 
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